क्या इंसान गलत होता है या उसके अंदर की वृत्तियाँ या बाहर की परिस्थितियाँ? यह मनन करने योग्य प्रश्न है।
अकसर लोग दूसरों के बारे में राय बनाते नज़र आते हैं। दरअसल वे सामनेवाले की वृत्तियों को देखते हुए अपनी राय कायम कर लेते हैं। हरेक बदल रहा है पर लोगों की राय नहीं बदलती। यह तब तक नहीं बदलती जब तक कोई ऐसी घटना नहीं घटती जो उस इंसान का असली चरित्र लोगों के सामने लाकर रख दे।
इस कहानी का हीरो ‘आनंद’ भी कुछ ऐसी समस्याओं से घिरा है। उसका अतीत, वर्तमान पर हावी है। अपने अतीत को छोड़ वह जीवन के नए अर्थ को तलाशने निकलता है।
* क्या वह जीवन के अर्थ को ढूँढ़ पाता है?
* क्या वह अपने अतीत की बुराइयों से निकल पाता है?
* क्या उसके जीवन में कोई नई रोशनी लेकर आता है?
* क्या उसका भविष्य परिवर्तित हो पाता है?
* अशांति से दूर होकर वह कैसे शांतिदाता बन पाता है?
इन सभी सवालों का रोमांचक लेकिन सच्चा जवाब आपके हाथ में है।
सरश्री की आध्यात्मिक खोज का सफर उनके बचपन से प्रारंभ हो गया था। इस खोज के दौरान उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन किया। इसके साथ ही अपने आध्यात्मिक अनुसंधान के दौरान अनेक ध्यान पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें कई वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर बढ़ाया। इसके बावजूद भी वे अंतिम सत्य से दूर रहे।
उन्होंने अपने तत्कालीन अध्यापन कार्य को भी विराम लगाया ताकि वे अपना अधिक से अधिक समय सत्य की खोज में लगा सकें। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपनी खोज जारी रखी। जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने जाना कि अध्यात्म का हर मार्ग जिस कड़ी से जुड़ा है वह है - समझ (अंडरस्टैण्डिंग)।
सरश्री कहते हैं कि ‘सत्य के सभी मार्गों की शुरुआत अलग-अलग प्रकार से होती है लेकिन सभी के अंत में एक ही समझ प्राप्त होती है। ‘समझ’ ही सब कुछ है और यह ‘समझ’ अपने आपमें पूर्ण है। आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।’
सरश्री ने ढाई हज़ार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की हैं। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनुवादित की जा चुकी हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं, जैसे पेंगुइन बुक्स, हे हाऊस पब्लिशर्स, जैको बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, मंजुल पब्लिशिंग हाऊस, प्रभात प्रकाशन, राजपाल अॅण्ड सन्स इत्यादि।