22 सितंबर, 1944 को ‘शहीदी दिवस’ मनाते हुए नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अपने सैनिकों से मार्मिक शब्दों में कहा, ‘‘हमारी मातृभूमि स्वतंत्रता की खोज में है। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।’’ किंतु दुर्भाग्यवश द्वितीय विश्वयुद्ध का पासा पलटा और जर्मनी ने हार मान ली, साथ ही जापान को भी घुटने टेकने पड़े। ऐसे में इन देशों ने आजाद हिंद फौज की मदद करने से इनकार कर दिया। इसी समय अंग्रेजों ने नेताजी पर नकेल कसने की रणनीति बनाई। इस वजह से नेताजी को टोक्यो की ओर पलायन करना पड़ा और कहते हैं कि हवाई दुर्घटना में उनका निधन हो गया। आजाद हिंद फौज भारत के गौरवशाली और क्रांतिकारी इतिहास को सुनहरे अक्षरों में कैद किए हुए है। देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करनेवाले स्वतंत्रता सेनानियों के सच्चे इतिहास से रूबरू कराती है यह पुस्तक।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी आंदोलन और राष्ट्रभक्त हुतात्माओं के बलिदान की प्रेरणागाथा बताती अत्यंत पठनीय पुस्तक।