Samagra Lok Vyavhar: Mitrata Aur Rishte Nibhane Ki Kala

· WOW PUBLISHINGS PVT LTD
4.5
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About this ebook

लोक व्यवहार चुनने की आज़ादी आपके हाथ में 


आश्‍चर्य की बात है कि इंसान अपना व्यवहार खुद चुनकर नहीं करता| उसका व्यवहार दूसरों के व्यवहार पर निर्भर होता है| जैसे ‘उसने मेरे साथ गलत व्यवहार किया इसलिए मैंने भी उसे भला-बुरा कहा… उसने मुझसे टेढ़े तरीके से बात की इसलिए मैंने क्रोध किया…’, ऐसी बातें तो अकसर आप सुनते व बोलते हैं| इसका अर्थ है कि सामनेवाला जैसा चाहे, वैसा व्यवहार हमसे निकलवा सकता है| यह दिखाता है कि हम बँधे हुए हैं| स्वयं को इस बंधन से मुक्त करने के लिए लोक व्यवहार की कला सीखें| इस पुस्तक से आप सीखेंगे –
* व्यवहार चुनने के लिए आज़ाद होने का मार्ग और उस पर चलने का राज़
* उच्चतम व्यवहार कब-कैसे किया जाए
* रिश्तों में सफलता हासिल करने के लिए लोक व्यवहार का सही तरीका
* मित्रता और रिश्ते निभाने की कला
* चार तरह के व्यवहार का ज्ञान
* सही समय पर सही व्यवहार कैसे किया जाए
* समग्र व्यवहार सीखने की विधि
* दर्द और दुःख में योग्य व्यवहार करने की कला
यह पुस्तक आपको मित्रता और रिश्ते निभाने तथा समग्र लोक व्यवहार की कला सिखाएगी| यह पुस्तक समग्र जीवन की कूँजी है| इस कूँजी द्वारा आप लोक व्यवहार कुशलता के खज़ाने का ताला बड़ी कुशलता से खोल पाएँगे|

Ratings and reviews

4.5
16 reviews
sanjay kushwaha
March 20, 2018
Many more for learning in this book
4 people found this review helpful
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Prafull Bonde
April 25, 2018
Best book
2 people found this review helpful
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Pulkit Gumber
June 23, 2023
uttam
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About the author

सरश्री की आध्यात्मिक खोज का सफर उनके बचपन से प्रारंभ हो गया था। इस खोज के दौरान उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन किया। इसके साथ ही अपने आध्यात्मिक अनुसंधान के दौरान अनेक ध्यान पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें कई वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर बढ़ाया। इसके बावजूद भी वे अंतिम सत्य से दूर रहे।

उन्होंने अपने तत्कालीन अध्यापन कार्य को भी विराम लगाया ताकि वे अपना अधिक से अधिक समय सत्य की खोज में लगा सकें। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपनी खोज जारी रखी। जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने जाना कि अध्यात्म का हर मार्ग जिस कड़ी से जुड़ा है वह है - समझ (अंडरस्टैण्डिंग)।

सरश्री कहते हैं कि ‘सत्य के सभी मार्गों की शुरुआत अलग-अलग प्रकार से होती है लेकिन सभी के अंत में एक ही समझ प्राप्त होती है। ‘समझ’ ही सब कुछ है और यह ‘समझ’ अपने आपमें पूर्ण है। आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।’

सरश्री ने ढाई हज़ार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की हैं। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनुवादित की जा चुकी हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं, जैसे पेंगुइन बुक्स, हे हाऊस पब्लिशर्स, जैको बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, मंजुल पब्लिशिंग हाऊस, प्रभात प्रकाशन, राजपाल अ‍ॅण्ड सन्स इत्यादि।

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