डिप्रेशन एक गंभीर और आम मानसिक बीमारी है। इस बीमारी में मन धीरे-धीरे दुर्बल होते जाता है और जीवन में उसका दुष्प्रभाव दिखाई देने लगता है। यदि आपका मन भी दुर्बल बनकर निराशा का कारण न बने तो निम्नलिखित सवालों के जवाब पाकर उसे सदा सबल बनाने का प्रयास करें।
1. क्या आपको लगता है कि ‘मैं अकसर निराश हो जाता हूँ?’
अगर ‘हाँ’ तो सबसे पहले इस विचार से मुक्ति पाएँ।
2. क्या भूतकाल और भविष्यकाल के विचार आपको उदास कर देते हैं?
अगर ‘हाँ’ तो वर्तमान में रहने की कला सीखें। जिससे निराशा का निवारण हो पाएगा।
3. क्या आप डिप्रेशन आने का कारण जानते हैं?
अगर ‘नहीं’ तो मनन करने की आदत विकसित करें।
4. क्या आप घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर देखते हैं और निराश हो जाते हैं?
अगर ‘हाँ’ तो घटनाओं को जैसा है वैसा देखना सीखें।
5. क्या आपको लगता है कि कोई कामयाब इंसान कभी निराश नहीं होता?
अगर ‘हाँ’ तो जानें कि दरअसल निराशा कामयाबी को बल देने के लिए आती है।
6. क्या आप समस्या और दुःखों की वजह से डिप्रेस हैं?
अगर ‘हाँ’ तो कोई बात नहीं, समस्याएँ आती-जाती रहती हैं।
उपरोक्त जवाबों को और विस्तार से जानने के लिए इस पुस्तक को ज़रूर पढ़ें और अपने जीवन को निराशा मुक्त बनाने की ओर बढ़ें।
सरश्री की आध्यात्मिक खोज का सफर उनके बचपन से प्रारंभ हो गया था। इस खोज के दौरान उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन किया। इसके साथ ही अपने आध्यात्मिक अनुसंधान के दौरान अनेक ध्यान पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें कई वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर बढ़ाया। इसके बावजूद भी वे अंतिम सत्य से दूर रहे।
उन्होंने अपने तत्कालीन अध्यापन कार्य को भी विराम लगाया ताकि वे अपना अधिक से अधिक समय सत्य की खोज में लगा सकें। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपनी खोज जारी रखी। जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने जाना कि अध्यात्म का हर मार्ग जिस कड़ी से जुड़ा है वह है - समझ (अंडरस्टैण्डिंग)।
सरश्री कहते हैं कि ‘सत्य के सभी मार्गों की शुरुआत अलग-अलग प्रकार से होती है लेकिन सभी के अंत में एक ही समझ प्राप्त होती है। ‘समझ’ ही सब कुछ है और यह ‘समझ’ अपने आपमें पूर्ण है। आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।’
सरश्री ने ढाई हज़ार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की हैं। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनुवादित की जा चुकी हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं, जैसे पेंगुइन बुक्स, हे हाऊस पब्लिशर्स, जैको बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, मंजुल पब्लिशिंग हाऊस, प्रभात प्रकाशन, राजपाल अॅण्ड सन्स इत्यादि।