Bhakti Ka Himalay - The Meera

· WOW PUBLISHINGS PVT LTD
4.6
9 reviews
Ebook
136
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About this ebook

मीरा का जीवन वैभवशाली होते हुए भी मीरा अपनी ही धुन में राजघराने से दूर, ऐश्वर्य से दूर अपनी भक्ति में लीन रही। मीरा के स्वभाव में निडरता और निर्मलता थी, अपने जीवन में वह सरल, सहज और निग्रंथ थी। अपने व्यवहार से वह खुश थी, अपने चरित्र से वह स्वच्छ थी तथा श्रीकृष्ण भक्ति में वह पूरी तरह से समर्पित थी। उसकी जबान पर हर वक्त अपने गिरधर गोपाल का ही नाम था। उसका होना केवल श्रीकृष्ण के लिए था।

मीरा के अंत के बारे में ऐसा कहा जाता है कि वह सशरीर दुनिया से चली गई। चूँकि मीरा की भक्ति इतनी उच्च कोटि की थी कि उसका मूर्ति में समा जाना लोगों के लिए कोई आश्चर्यवाली बात नहीं थी। लोगों ने इस बात पर इसलिए विश्वास किया क्योंकि उन्होंने मीरा को श्रीकृष्ण की आराधना करते हुए, उसकी मूर्ति में खोए हुए, श्रीकृष्ण की सेवा करते हुए देखा था। मीरा के शरीर में भक्ति को मंजिल मिली और मीरा के जीवन में मंजिल को भक्ति मिली!

भक्ति को मंजिल मिली, मंजिल को मीरा जैसी भक्ति मिली। मंजिल को भक्ति मिली यानी श्रीकृष्ण को मीरा मिली। इसलिए मीरा को “द मीरा”, “द हिमालय ऑफ भक्ति” कहा गया। मीरा की भक्ति सर्वोत्तम शिखर पर पहुँची थी इसलिए मीरा “द मीरा” बनी।

Ratings and reviews

4.6
9 reviews
Amit Tolani
April 25, 2017
Best Best
4 people found this review helpful
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Gunjan S
April 25, 2017
Meera.....the source of TEJPREM.....Dhanyawad SS 😇
5 people found this review helpful
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Dr.Kamlesh Talreja
April 24, 2017
Dhanyawaad ss
3 people found this review helpful
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About the author

सरश्री की आध्यात्मिक खोज का सफर उनके बचपन से प्रारंभ हो गया था। इस खोज के दौरान उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन किया। इसके साथ ही अपने आध्यात्मिक अनुसंधान के दौरान अनेक ध्यान पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें कई वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर बढ़ाया। इसके बावजूद भी वे अंतिम सत्य से दूर रहे।

उन्होंने अपने तत्कालीन अध्यापन कार्य को भी विराम लगाया ताकि वे अपना अधिक से अधिक समय सत्य की खोज में लगा सकें। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपनी खोज जारी रखी। जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने जाना कि अध्यात्म का हर मार्ग जिस कड़ी से जुड़ा है वह है - समझ (अंडरस्टैण्डिंग)।

सरश्री कहते हैं कि ‘सत्य के सभी मार्गों की शुरुआत अलग-अलग प्रकार से होती है लेकिन सभी के अंत में एक ही समझ प्राप्त होती है। ‘समझ’ ही सब कुछ है और यह ‘समझ’ अपने आपमें पूर्ण है। आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।’

सरश्री ने ढाई हज़ार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की हैं। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनुवादित की जा चुकी हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं, जैसे पेंगुइन बुक्स, हे हाऊस पब्लिशर्स, जैको बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, मंजुल पब्लिशिंग हाऊस, प्रभात प्रकाशन, राजपाल अ‍ॅण्ड सन्स इत्यादि।

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