क्या आइने (शीशे) का टूटना अशुभ होता है? जी हाँ, यदि वह आइना अथवा शीशा आपके सिर पर फोड़ा गया हो तो।
क्या बिल्ली का हमारा रास्ता काटना बुरा होता है? जी हाँ, यदि आप चूहे हैं तो। यदि हाथ में खुजली होने से पैसा मिलता है तो हाथ पर खुजली का पावडर लगाओ। ऐसे आसान तरीके भ्रमित इंसान इस्तेमाल कर सकता है। भ्रमित इंसान, फलाँ तरह के अंधविश्वासों को भी पालता है-
१) ऊपरी अंधविश्वास : छिपकली का गिरना, आइना टूटना, आँख फड़कना अशुभ है।
२) ऊपरी लेकिन गहरे अंधविश्वास : स्वर्ग-नरक, कर्म-भाग्य, जीवन-मृत्यु, दु:ख-सुख की मान्यताएँ।
३) गहरे अंधविश्वास : ईश्वर विशेष चेहरा, आभूषण, मेकअप रखता है। कुछ बातों पर नाराज़ व खुश होता है।
४) अति गहरे अंधविश्वास : मैं हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, स्त्री, पुरुष, काला, गोरा हूँ, मैं शरीर हूँ।
५) आत्मसाक्षात्कार के प्रति अज्ञान : आत्मसाक्षात्कार के लिए बहुत तप करना पड़ता है, सात जन्म लगते हैं। अध्यात्म पचास साल के बाद अपनाना चाहिए, कुछ विशेष पहनावा, संसार छोड़ना व एकांतवास होकर ध्यान करनाचाहिए। दान, सेवा, पूजा-पाठ करना ही अध्यात्म है।
जेब में मंत्र का कागज रखकर, बाँह में तावीज बाँधकर, घर के दरवाजे, खिड़कियों को अलग दिशा में खोलकर, ऊँगलियों में अँगुठियाँ पहनकर डूबनेवाला इंसान तिनके का सहारा ढूँढ़ता है। इसलिए इस तरह की अंधविश्वासों को बल मिलता है, जिसका खुलासा होना चाहिए। यही खुलासा इस पुस्तक में किया गया है।
सरश्री की आध्यात्मिक खोज का सफर उनके बचपन से प्रारंभ हो गया था। इस खोज के दौरान उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन किया। इसके साथ ही अपने आध्यात्मिक अनुसंधान के दौरान अनेक ध्यान पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें कई वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर बढ़ाया। इसके बावजूद भी वे अंतिम सत्य से दूर रहे।
उन्होंने अपने तत्कालीन अध्यापन कार्य को भी विराम लगाया ताकि वे अपना अधिक से अधिक समय सत्य की खोज में लगा सकें। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपनी खोज जारी रखी। जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने जाना कि अध्यात्म का हर मार्ग जिस कड़ी से जुड़ा है वह है - समझ (अंडरस्टैण्डिंग)।
सरश्री कहते हैं कि ‘सत्य के सभी मार्गों की शुरुआत अलग-अलग प्रकार से होती है लेकिन सभी के अंत में एक ही समझ प्राप्त होती है। ‘समझ’ ही सब कुछ है और यह ‘समझ’ अपने आपमें पूर्ण है। आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।’
सरश्री ने ढाई हज़ार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की हैं। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनुवादित की जा चुकी हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं, जैसे पेंगुइन बुक्स, हे हाऊस पब्लिशर्स, जैको बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, मंजुल पब्लिशिंग हाऊस, प्रभात प्रकाशन, राजपाल अॅण्ड सन्स इत्यादि।