Satta Ke Samne

· Vani Prakashan
3.0
Maoni moja
Kitabu pepe
244
Kurasa
Ukadiriaji na maoni hayajahakikishwa  Pata Maelezo Zaidi

Kuhusu kitabu pepe hiki

यह किताब तब आ रही है जब इक्कीसवीं सदी को बीसवाँ साल लग गया। पिछले साल 'जनसत्ता' में 'बेबाक बोल' स्तम्भ 'चुनावी पाठ' के साथ शुरू किया था। 2014 के आम चुनावों में नरेन्द्र मोदी की अगुआई में भाजपा की प्रचण्ड जीत ने भारतीय राजनीति को एक प्रयोगशाला सरीखा बना दिया। देश की संसद में तीन तलाक़ को आपराधिक बनाने से लेकर कश्मीर में अनुच्छेद 370 का खात्मा करने जैसे मज़बूत राजनीतिक फ़ैसले हुए। नोटबन्दी और जीएसटी जैसे फ़ैसलों को केन्द्र? सरकार सही बता ही रही थी। इन सबके बीच मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों ने जो असन्तोष का सन्देश दिया वह चौंकाने वाला था। नरेन्द्र मोदी, जनता और विपक्ष की तिकडी को समझने में जो हमने चुनावी पाठ शुरू किया वह 2019 के इक्कीसवें पाठ में 'जो जीता वही नरेन्द्र' के साथ चौंकाने वाला नतीजा लेकर आया। नरेन्द्र मोदी की अगुआई में पचास साल बाद किसी गैर-कांग्रेसी दल ने लगातार दो लोकसभा चुनावों में बहुमत के साथ आम चुनाव जीता। इस लोकसभा चुनाव में भारतीय जनमानस में वह राष्ट्रीय भाव दिखा जो अब तक ख़ारिज किया जाता रहा। चुनावी पाठ का सार था कि जनता ही नरेन्द्र मोदी के पक्ष में लड़ी थी। इसके साथ ही यह तय हो गया था कि लोकसभा चुनावों में छवि-बोध की जंग में कांग्रेस बुरी तरह हार चुकी है। इस किताब का सार तो नरेन्द्र मोदी की दूसरी प्रचण्ड जीत ही है। लेकिन इस किताब के छापेखाने में जाने के साथ ही महाराष्ट्र और झारखण्ड का सन्देश भी है कि जनता केन्द्र और राज्य के मुद्दों को अलग-अलग देखना सीख चुकी है और क्षेत्रीय क्षत्रपों की समय-समाप्ति का ऐलान बहत जल्द ख़ारिज हो गया। राजनीतिक टिप्पणीकारों के लिए जनता ने 2019 को बहुत ही चुनौती भरा बना दिया। सत्ता और जनता के रिश्ते को समझने की यह कोशिश जारी रहेगी।

Ukadiriaji na maoni

3.0
Maoni moja

Kuhusu mwandishi

यह किताब तब आ रही है जब इक्कीसवीं सदी को बीसवाँ साल लग गया। पिछले साल 'जनसत्ता' में 'बेबाक बोल' स्तम्भ 'चुनावी पाठ' के साथ शुरू किया था। 2014 के आम चुनावों में नरेन्द्र मोदी की अगुआई में भाजपा की प्रचण्ड जीत ने भारतीय राजनीति को एक प्रयोगशाला सरीखा बना दिया। देश की संसद में तीन तलाक़ को आपराधिक बनाने से लेकर कश्मीर में अनुच्छेद 370 का खात्मा करने जैसे मज़बूत राजनीतिक फ़ैसले हुए। नोटबन्दी और जीएसटी जैसे फ़ैसलों को केन्द्र? सरकार सही बता ही रही थी। इन सबके बीच मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों ने जो असन्तोष का सन्देश दिया वह चौंकाने वाला था। नरेन्द्र मोदी, जनता और विपक्ष की तिकडी को समझने में जो हमने चुनावी पाठ शुरू किया वह 2019 के इक्कीसवें पाठ में 'जो जीता वही नरेन्द्र' के साथ चौंकाने वाला नतीजा लेकर आया। नरेन्द्र मोदी की अगुआई में पचास साल बाद किसी गैर-कांग्रेसी दल ने लगातार दो लोकसभा चुनावों में बहुमत के साथ आम चुनाव जीता। इस लोकसभा चुनाव में भारतीय जनमानस में वह राष्ट्रीय भाव दिखा जो अब तक ख़ारिज किया जाता रहा। चुनावी पाठ का सार था कि जनता ही नरेन्द्र मोदी के पक्ष में लड़ी थी। इसके साथ ही यह तय हो गया था कि लोकसभा चुनावों में छवि-बोध की जंग में कांग्रेस बुरी तरह हार चुकी है। इस किताब का सार तो नरेन्द्र मोदी की दूसरी प्रचण्ड जीत ही है। लेकिन इस किताब के छापेखाने में जाने के साथ ही महाराष्ट्र और झारखण्ड का सन्देश भी है कि जनता केन्द्र और राज्य के मुद्दों को अलग-अलग देखना सीख चुकी है और क्षेत्रीय क्षत्रपों की समय-समाप्ति का ऐलान बहत जल्द ख़ारिज हो गया। राजनीतिक टिप्पणीकारों के लिए जनता ने 2019 को बहुत ही चुनौती भरा बना दिया। सत्ता और जनता के रिश्ते को समझने की यह कोशिश जारी रहेगी।

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