समय के साथ-साथ संस्कृति में विविध तत्वों का समावेश होता रहता है। उसके सांस्कृतिक प्रतिमान स्वयं भी प्रभावित होते हैं और अन्यों को भी प्रभावित करते हैं। वस्तुतः सामाजिक विकास की प्रक्रिया ही सांस्कृतिक प्रतिमानों के परिवर्तन की प्रक्रिया होती है। भारतीय संस्कृति युगों-युगों से धर्म पर आधारित रही है, जिसने सदैव सद्आचरण, सद्व्यहार, सद्विचार, समन्वय आदि को आधार बनाया है। भारतीय संस्कृति का धर्म किसी पथ विशेष का परिचायक नहीं है, अपितु यह सत्य मार्ग का अनुसरण करने का उपदेशक है। इसीलिए भारत में ‘सत्यम् शिवम् सुंदरम्’, ‘सत्यमेव जयते’ आदि सद्विचारों का बोलबाला रहा है।