पूज्य श्री कहते हैं- "तुम अपने को दीन हीन कभी मत समझो। तुम आत्मस्वरूप से संसार की सबसे बड़ी सत्ता हो । तुम्हारे पैरों तले सूर्य और चन्द्र सहित हजारों पृथ्वियाँ दबी हुई हैं । तुम्हें अपने वास्तिवक स्वरूप में जागने मात्र की देर है। अपने जीवन को संयम-नियम और विवेक-वैराग्य से भरकर आत्माभिमुख बनाओ। किसने तुम्हें दीन-हीन बनाये रखा है ? किसने तुम्हें अज्ञानी और मूढ़ बनाये रखा है? मान्यताओं ने ही न ? तो छोड़ दो उन दुःखद मान्यताओं को जाग जाओ अपने स्वरूप में । आपको मात्र जागना है... बस। इतना ही काफी है । आपके तीव्र पुरुषार्थ और सदगुरु के कृपा-प्रसाद से वह कार्य सिद्ध हो जाता है ।"
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