हिंदी साहित्य में बाल-तथा किशोरों के लिए लिखा हुआ वाड्मय बहुत ही कम है। बच्चों की परवरिश में, उनकी अवस्था तथा मानसिकता को ध्यान में रखकर लिखना कर्मकठिन कार्य है। सरल सहज स्वभावानुसार उनके मन में उठनेवाले प्रश्न, प्रकृति की विशालता, नीला नभ-प्रागंण, रात के अंधेरे में नक्षत्रों के टिम टिमाते दीप, शुक्ल पक्ष में वर्धिष्णु चंद्र,पूनम का अति मोहक चंद्र, जिस से उनका नाता जुडता है भांजे का । बहते झरने, कलकल करती नदियाँ, अथाह सागर। प्रकृति के दृष्यों में, पेड़, आकाश में उमड़ घुमड़कर आनेवाले मेघ, बरसनेवाले मेह, कलि, फूल, तोता, पंछी, बकरी, गाय, शेर, भौंरा, पतंग यहाँ तक कि घर की अलमारी कविता के विषय बन गये हैं, जिनका संबंध बालकों से होता है, उनके प्रति कुतूहल, उनका किया गया मानवीकरण और उनसे किया गया बाल मन का स्वाभाविक सहज संवाद अत्यंत सुंदर बना है। मूलत: मराठी की कविताएँ जितनी सुंदर सरस हैं उतनी ही सरस, सफल हिंदी में बनी है। अनुवादक नारायण कुलकर्णी मराठी के व्यंग्य कवि तथा आध्यात्मिक क्षेत्र के सफल भाष्यकार हैं। आप रेल के राजभाषा विभाग में अनुवाद विभाग में कार्यरत थे । एक साथ आप का मराठी, हिंदी, अंग्रेजी पर अधिकार है। मुख्यत: आप कवि हैं अत: हिंदी में अनुवाद सहज, स्वाभाविक बना हैः बहुत सारी पंक्तियाँ मुझे प्रभावित कर गयी है; जैसे- भगवान को नारियल बहुत ही भाये नारियल का पेड़ आँगन में लगाये! इस पुस्तिका का नाम बड़ा सुंदर है ‘मज़ेदार गाने’ और सही में है भी वैसे- चलो फिर ‘गाएँ हम मज़ेदार गाने!’