इस विश्व में आने के बाद हमारी जीवनरूपी यात्रा जब शुरू होती है तब इस यात्रा में सभी के पास रिश्ते-नाते, संसाधन अलग तरह से उपलब्ध होते हैं। लेकिन इनके साथ इस यात्रा को कैसे पूर्ण किया जाए, इसका चुनाव करने का मौका सभी के पास एक जैसा ही होता है। इस यात्रा के बीच में या जब कभी आप पीछे मुड़कर देखेंगे तब क्या आप चाहेंगे कि यह आपको गौरवशाली प्रतित हो?
एक सर्वेक्षण में जब लोगों से यह पूछा गया कि वे अहंकारी जीवन जीना चाहेंगे या गौरवशाली? तब 98 प्रतिशत लोगों ने गौरवशाली जीवन जीने का चुनाव किया। इसके बावजूद अकसर लोग इसमें खुद को असफल होते हुए देखते हैं। यह पुस्तक हमारे सामने गौरवशाली जीवन के रहस्य खोलती है। इस पुस्तक में हम जानेंगे-
* गौरवशाली जीवन क्या है?
* ऐसा जीवन जीने में हम असफल क्यों हो जाते हैं?
* वे कौन से सूक्ष्म गुण हैं, जो हमारे जीवन को गौरवशाली बनाते हैं?
* वे कौन सी चीज़ें हैं, जो हमें गौरवशाली जीवन से दूर ले जा सकती हैं?
* किन बातों का संतुलन हमारे जीवन को सफल बना सकता है?
* दूसरों का जीवन गौरवशाली बनाने के लिए हम उनकी मदद कैसे कर सकते हैं?
इसके अतिरिक्त इस पुस्तक में दो ध्यान पद्धतियाँ दी गई हैं, जो कठिन परिस्थितियों में हमें स्थिर और अचल रहने में मदद करती हैं।
आइए, इस पुस्तक के साथ हम गौरवशाली जीवन जीने की ओर अपना पहला कदम उठाएँ।
सरश्री की आध्यात्मिक खोज का सफर उनके बचपन से प्रारंभ हो गया था। इस खोज के दौरान उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन किया। इसके साथ ही अपने आध्यात्मिक अनुसंधान के दौरान अनेक ध्यान पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें कई वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर बढ़ाया। इसके बावजूद भी वे अंतिम सत्य से दूर रहे।
उन्होंने अपने तत्कालीन अध्यापन कार्य को भी विराम लगाया ताकि वे अपना अधिक से अधिक समय सत्य की खोज में लगा सकें। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपनी खोज जारी रखी। जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने जाना कि अध्यात्म का हर मार्ग जिस कड़ी से जुड़ा है वह है - समझ (अंडरस्टैण्डिंग)।
सरश्री कहते हैं कि ‘सत्य के सभी मार्गों की शुरुआत अलग-अलग प्रकार से होती है लेकिन सभी के अंत में एक ही समझ प्राप्त होती है। ‘समझ’ ही सब कुछ है और यह ‘समझ’ अपने आपमें पूर्ण है। आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।’
सरश्री ने ढाई हज़ार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की हैं। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनुवादित की जा चुकी हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं, जैसे पेंगुइन बुक्स, हे हाऊस पब्लिशर्स, जैको बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, मंजुल पब्लिशिंग हाऊस, प्रभात प्रकाशन, राजपाल अॅण्ड सन्स इत्यादि।